लेखनी कहानी -17-Oct-2022 गोपाष्टमी (भाग 16 )
शीर्षक :- गोपाष्टमी
हमारे देश में गौ माता की पूजा कीजाती है हम हिन्दू पहली रोटी गाय माता को खिलाते है। गाय का मूत्र गाय का गोबर सभी दवा के रूप में प्रयोग में होते है।
दीपावली के बाद अष्टमी को गोपाष्टमी के रूप में मनाई जाती है। भारत में गाय माता के समान है। यहाँ माना जाता है कि सभी देवी, देवता गौ माता के अंदर समाहित रहते है। तो उनकी पूजा करने से सभी का फल मिलता है। गोपाष्टमी पर्व एवम उपवास इस दिन भगवान कृष्ण एवम गौ माता की पूजा की जाती हैं।
हिन्दू धर्म में गाय का स्थान माता के तुल्य माना जाता है, पुराणों ने भी इस बात की पुष्टि की है. यह त्योहार बहुत ही पवित्र त्योहार है।ऋ भगवान श्री कृष्ण एवम भाई बलराम दोनों का ही बचपन गौकुल में बीता था, जो कि ग्वालो की नगरी थी। ग्वाल जो गाय पालक कहलाते हैं. कृष्ण एवम बलराम को भी गाय की सेवा, रक्षा आदि का प्रशिक्षण दिया गया था. गोपाष्टमी के एक दिन पूर्व इन दोनों ने गाय पालन का पूरा ज्ञान हासिल कर लिया था।
हिन्दू संस्कृति में गाय का विशेष स्थान हैं. माँ का दर्जा दिया जाता हैं क्यूंकि जैसे एक माँ का ह्रदय कोमल होता हैं, वैसा ही गाय माता का होता हैं. जैसे एक माँ अपने बच्चो को हर स्थिती में सुख देती हैं, वैसे ही गाय भी मनुष्य जाति को लाभ प्रदान करती हैं।
गाय के दूध, गाय के घी, दही, छांछ यहाँ तक की मूत्र भी हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। गोपाष्टमी हमें इसी बात का संकेत देती हैं कि पुरातन युग में जब स्वयं श्री कृष्ण ने गौ माता की सेवा की थी।
भगवान कृष्ण के समय से गोपाष्टमी का त्योहार मनाया जारहा है। जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा। तब वे अपनी मैया यशोदा से जिद्द करने लगे कि वे अब बड़े हो गये हैं और बछड़े को चराने के बजाय वे गैया चराना चाहते है। उनके हठ के आगे मैया को हार माननी पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया।
कन्हैया ने स्वयं नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी, कि अब वह गैया ही चरायेंगे. नन्द बाबा ने गैया चराने के लिए पंडित महाराज को मुहूर्त निकालने कह दिया।
पंडित जी ने पूरा पंचाग देख लिया और बड़े अचरज में आकर कहा कि अभी इसी समय के आलावा कोई शेष मुहूर्त नही हैं अगले बरस तक. शायद भगवान की इच्छा के आगे कोई मुहूर्त क्या था. वह दिन गोपाष्टमी का था. जब श्री कृष्ण ने गैया पालन शुरू किया।
इस प्रकार कार्तिक शुक्ल पक्ष के दिन से गोपाष्टमी मनाई जाती है। भगवान कृष्ण के जीवन में गौ का महत्व बहुत अधिक था।
इस दिन गाय की पूजा की जाती हैं. सुबह जल्दी उठकर स्नान करके गाय के चरण स्पर्श किये जाते हैं।गोपाष्टमी की पूजा पुरे रीती रिवाज से पंडित के द्वारा कराई जाती है।
सुबह ही गाय और उसके बछड़े को नहलाकर तैयार किया जाता है। उसका श्रृंगार किया जाता हैं, पैरों में घुंघरू बांधे जाते हैं,अन्य आभूषण पहनायें जाते हैं।
शाम को जब गाय घर लौटती है, तब फिर उनकी पूजा की जाती है, उन्हें अच्छा भोजन दिया जाता है। खासतौर पर इस दिन गाय को हरा चारा खिलाया जाता हैं.
जिनके घरों में गाय नहीं होती है वे लोग गौ शाला जाकर गाय की पूजा करते है, उन्हें गंगा जल, फूल चढाते है, दिया जलाकर गुड़ खिलाते , गाय को तिलक लगाती है. इस दिन भजन किये जाते हैं। गाय को हरा मटर एवं गुड़ खिलाया जाता है।
गौ माता का हिन्दू संस्कृति में अधिक महत्व हैं. पुराणों में गाय के पूजन, उसकी रक्षा, पालन,पोषण को मनुष्य का कर्तव्य माना गया हैं. हम सभी को गौ माता की सेवा करना चाहिये, क्यूंकि वह भी हमें एक माँ की तरह ही पालन करती हैं।
30 Days Festival Competition हेतु रचना।
नरेश शर्मा। " पचौरी "
Palak chopra
03-Nov-2022 03:09 PM
Shandar 🌸
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Teena yadav
02-Nov-2022 06:07 PM
Amazing
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Haaya meer
02-Nov-2022 05:15 PM
Amazing
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